मामले की पृष्ठभूमि
पटना हाई कोर्ट का यह निर्णय 30 अक्टूबर 2024 को आया, जो एक गंभीर POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) मामले से संबंधित है। यह मामला रोहतास जिले के तिलौथु गांव का है, जहां मोहम्मद महमूद आलम नामक व्यक्ति पर अपनी 10 वर्षीय भतीजी के साथ दुष्कर्म का आरोप लगाया गया था।
घटना का विवरण
4 मई 2014 को, आरोपी ने पीड़िता की मां से कहा कि उसकी बेटी गर्भवती है और उसकी देखभाल के लिए बच्ची की जरूरत है। इस बहाने से वह 10 वर्षीय बच्ची को बनारस ले गया। वहां एक मुसाफिरखाने में उसने बच्ची को नशीला पदार्थ दिया और बेहोशी की हालत में उसके साथ दुष्कर्म किया। दो दिन बाद जब बच्ची घर वापस आई, तो उसने अपनी दादी और परिवार को पूरी घटना बताई।
कानूनी कार्यवाही
6 मई 2014 को तिलौथु थाने में FIR दर्ज की गई। प्रारंभ में केवल IPC की धारा 376 के तहत मामला दर्ज हुआ, लेकिन बाद में चार्जशीट में IPC की धारा 365, 366(A), 376 और POCSO Act की धारा 6 के तहत आरोप लगाए गए।
ट्रायल कोर्ट का फैसला
ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषी पाया और POCSO Act की धारा 6 के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई। साथ ही 50,000 रुपए का जुर्माना और पीड़िता को 4 लाख रुपए मुआवजा देने का आदेश दिया।
हाई कोर्ट का विश्लेषण
1. उम्र की पुष्टि की समस्या
हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि POCSO Act लागू करने के लिए यह साबित करना जरूरी है कि पीड़िता 18 वर्ष से कम उम्र की थी। न्यायालय ने जरनैल सिंह बनाम हरियाणा राज्य (2013) 7 SCC 263 के मामले का हवाला देते हुए कहा कि उम्र निर्धारण के लिए निम्नलिखित क्रम अपनाना चाहिए:
- स्कूल का जन्म प्रमाण पत्र या मैट्रिक सर्टिफिकेट
- नगर निगम या पंचायत का जन्म प्रमाण पत्र
- केवल इनके अभाव में मेडिकल टेस्ट
इस मामले में स्कूल या अन्य प्रमाण पत्र उपलब्ध नहीं थे, केवल मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट थी जिसमें पीड़िता की उम्र 12-14 साल बताई गई थी।
2. मेडिकल साक्ष्य की सीमाएं
न्यायालय ने मुकर्रब बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2017) 2 SCC 210 का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि मेडिकल रिपोर्ट निर्णायक साक्ष्य नहीं है। रेडियोलॉजिकल जांच में त्रुटि की संभावना रहती है और यह केवल एक मार्गदर्शक कारक है।
3. गवाहों की विश्वसनीयता
न्यायालय ने अप्पाभाई बनाम गुजरात राज्य (1988) के मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि:
- रिश्तेदार गवाहों की गवाही केवल रिश्तेदारी के कारण खारिज नहीं की जा सकती
- स्वतंत्र गवाहों की अनुपस्थिति के कारण मामला खारिज नहीं हो सकता
- पीड़िता की गवाही पर्याप्त है यदि वह विश्वसनीय हो
4. पीड़िता की गवाही का विश्लेषण
न्यायालय ने पाया कि:
- पीड़िता (PW-5) की गवाही संगत और सत्य है
- उसके बयान में कोई मुख्य विरोधाभास नहीं है
- मेडिकल साक्ष्य उसकी गवाही का समर्थन करता है
- डॉक्टर ने हाइमन टूटा हुआ पाया और दुष्कर्म की संभावना से इनकार नहीं किया
मुख्य कानूनी मुद्दे
1. गलत धारा का प्रयोग
हाई कोर्ट ने पाया कि ट्रायल कोर्ट ने गलत धारा लगाई थी:
- पीड़िता की उम्र 12 साल से अधिक थी, इसलिए POCSO Act की धारा 4 लागू होनी चाहिए, धारा 6 नहीं
- धारा 5 के अनुसार केवल 12 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ दुष्कर्म को "aggravated penetrative sexual assault" माना जाता है
2. सजा में संशोधन
न्यायालय ने आरोपी की वृद्धावस्था और 10 वर्षों से जेल में बंद होने के कारण सजा को घटाकर पहले से भुगते गए समय तक सीमित कर दिया।
न्यायालय का अंतिम निर्णय
दोषसिद्धि बरकरार
- आरोपी को POCSO Act की धारा 4 के तहत दोषी ठहराया गया
- धारा 29 और 30 के तहत प्रतिकूल उपधारणा सिद्ध हुई
- आरोपी इस उपधारणा को खंडित नहीं कर सका
सजा में संशोधन
- आजीवन कारावास के बजाय पहले से भुगते गए समय (10+ वर्ष) तक सीमित
- 50,000 रुपए जुर्माना बरकरार, जो पीड़िता को दिया जाएगा
- जुर्माना न देने पर 1 साल अतिरिक्त कारावास
मुआवजे में वृद्धि
- पीड़िता को मिलने वाला मुआवजा 4 लाख से बढ़ाकर 5 लाख रुपए
- अतिरिक्त 1 लाख रुपए DLSA रोहतास द्वारा 2 महीने में देना होगा
इस निर्णय का महत्व
1. बाल संरक्षण में मजबूती
यह निर्णय POCSO Act के सटीक प्रयोग की आवश्यकता को रेखांकित करता है और बाल यौन उत्पीड़न के मामलों में न्यायिक सतर्कता दर्शाता है।
2. साक्ष्य मूल्यांकन में संतुलन
न्यायालय ने दिखाया कि कैसे मेडिकल साक्ष्य, पीड़िता की गवाही, और अन्य परिस्थितिजन्य साक्ष्यों को संतुलित रूप से देखना चाहिए।
3. उम्र निर्धारण की स्पष्टता
यह निर्णय उम्र निर्धारण की प्रक्रिया और विभिन्न साक्ष्यों के क्रम को स्पष्ट करता है।
4. न्यायिक संवेदनशीलता
सजा में संशोधन करते समय न्यायालय ने मानवीय पहलुओं को भी ध्यान में रखा, जो न्यायिक संवेदनशीलता दर्शाता है।
निष्कर्ष
यह निर्णय POCSO मामलों में एक महत्वपूर्ण मिसाल स्थापित करता है। यह दिखाता है कि न्यायपालिका बाल संरक्षण के प्रति कितनी गंभीर है, साथ ही यह भी सुनिश्चित करती है कि कानून का सही प्रयोग हो। पीड़िता को न्याय मिला और उसके भविष्य के लिए पर्याप्त मुआवजा भी मिला। यह फैसला भविष्य के POCSO मामलों के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में काम करेगा।
संपूर्ण फैसला नीचे पढ़ें
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