खनन स्वीकृति की भूलभुलैया: पटना उच्च न्यायालय ने सरकार की लापरवाही पर लगाई रोक – छह वर्षों की देरी के बावजूद माइनिंग कंपनी को मिला न्याय

 


न्यायिक व्याख्या (हिंदी में):

पटना उच्च न्यायालय ने 9 फरवरी 2024 को CWJC No. 13213 of 2023 में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें माइनिंग परियोजना के लिए छह वर्षों से अधिक समय से लटकी पर्यावरणीय स्वीकृति के मुद्दे पर राज्य सरकार के रवैये को अनुचित ठहराया गया। यह याचिका M/s Starnet Marketing Private Ltd. नामक कंपनी द्वारा दायर की गई थी, जो कि बिहार के कैमूर जिले में Madurna Stone Mining Project के तहत पत्थर खनन की योजना को लेकर परेशान थी।


मामले की पृष्ठभूमि:

वर्ष 2016 में, याचिकाकर्ता कंपनी को ई-नीलामी के माध्यम से कैमूर जिले के मदुर्ना गाँव में खनन परियोजना के लिए In-Principle Approval मिला था। इसके तहत एक प्रारंभिक Letter of Intent (LOI) 26 जुलाई 2016 को जारी किया गया था। परियोजना का क्षेत्रफल लगभग 8.937 हेक्टेयर था और वार्षिक उत्पादन 495285.12 टन प्रस्तावित था।

इसके बाद याचिकाकर्ता ने खनन योजना प्रस्तुत की, जिसे 22.09.2017 को स्वीकृति मिली। इसके उपरांत पर्यावरणीय स्वीकृति (Environmental Clearance) के लिए याचिकाकर्ता ने सभी औपचारिकताएँ पूरी कीं – जिसमें पब्लिक हीयरिंग, पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से संपर्क, वन विभाग की मंजूरी आदि शामिल थी।


विवाद का मूल कारण:

छह वर्षों की प्रक्रिया के दौरान याचिकाकर्ता को पर्यावरणीय मंजूरी नहीं मिल पाई। इसी बीच वर्ष 2019 में COVID-19 महामारी ने पूरी व्यवस्था को बाधित किया। अंततः जिला पदाधिकारी ने 24 फरवरी 2023 को परियोजना की स्वीकृति रद्द कर दी और ₹51,50,000 की सुरक्षा राशि जब्त कर ली। इसके विरुद्ध याचिकाकर्ता ने अपील की, जिसे खनिज आयुक्त (Mines Commissioner) ने 11 अगस्त 2023 को खारिज कर दिया।


याचिकाकर्ता की दलीलें:

  1. याचिकाकर्ता ने समय रहते सभी जरूरी कागजात जमा किए, लेकिन विभागीय स्तर पर विलंब हुआ।

  2. पर्यावरणीय मंजूरी में देरी के लिए कंपनी नहीं, बल्कि संबंधित सरकारी विभाग जिम्मेदार हैं।

  3. COVID-19 जैसे वैश्विक संकट ने प्रक्रिया को और बाधित किया।

  4. कंपनी ने ₹5 करोड़ की राशि अग्रिम जमा की और मशीनी उपकरण भी खरीद लिए थे – यह स्पष्ट निवेश इंगित करता है।

  5. सुनवाई का अवसर दिए बिना कार्यपालक आदेश पारित कर दिया गया, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध है।


राज्य सरकार और खान विभाग की दलीलें:

  1. परियोजना के तहत 180 दिनों के भीतर पर्यावरणीय मंजूरी और अनुबंध निष्पादन जरूरी था – याचिकाकर्ता इसमें असफल रहा।

  2. बार-बार नोटिस दिए जाने के बावजूद आवश्यक दस्तावेज नहीं दिए गए।

  3. इसलिए नियम 28 (2019 की नियमावली) के तहत कार्यवाही की गई।


न्यायालय का निष्कर्ष:

  1. सरकार की देरी: न्यायालय ने माना कि पर्यावरणीय मंजूरी प्राप्त करने में याचिकाकर्ता ने सभी आवश्यक कदम उठाए, लेकिन सरकारी विभागों की निष्क्रियता के कारण मंजूरी नहीं मिल सकी।

  2. प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन: बिना सुनवाई के जिला पदाधिकारी द्वारा आदेश पारित करना और उसके बाद अपील खारिज कर देना न्यायोचित नहीं है।

  3. DSR (District Survey Report) की अनिवार्यता: सुप्रीम कोर्ट के Pawan Kumar मामले के हवाले से न्यायालय ने स्पष्ट किया कि बिना अद्यतन DSR के नीलामी की प्रक्रिया वैध नहीं मानी जा सकती। 2016 में जारी LOI पुरानी DSR पर आधारित था।

  4. कोविड-19 की बाध्यता: महामारी के दौरान किसी भी कंपनी से सामान्य परिस्थितियों जैसी अपेक्षा नहीं की जा सकती। देरी का दोष पूरी तरह याचिकाकर्ता पर नहीं थोपा जा सकता।

  5. सार्वजनिक हित बनाम व्यक्तिगत अधिकार: न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता का कानूनी अधिकार प्रभावित हुआ है और उसने न्यायालय का रुख करना उचित समझा।


न्यायालय का आदेश:

  1. जिला पदाधिकारी का दिनांक 24.02.2023 का आदेश (स्वीकृति रद्द व राशि जब्ती) रद्द किया गया।

  2. 11.08.2023 का खनिज आयुक्त का अपील खारिज करने का आदेश भी रद्द किया गया।

  3. सरकार को निर्देशित किया गया कि याचिकाकर्ता के अनुरोधों पर नियमानुसार निर्णय लेकर, यदि आवश्यक हो तो उचित समयावधि देकर, अनुबंध निष्पादित किया जाए।


निष्कर्ष:

यह फैसला एक महत्वपूर्ण नज़ीर प्रस्तुत करता है कि सरकार द्वारा जारी स्वीकृतियों के बाद जब कंपनियाँ निवेश करती हैं, तो प्रशासन की निष्क्रियता अथवा देरी की सज़ा उन्हें नहीं दी जा सकती। पटना हाईकोर्ट ने साफ़ किया कि यदि एक निवेशक कानून के तहत कार्य कर रहा है, तो उसे प्रशासनिक भूलों की कीमत नहीं चुकानी चाहिए।

संपूर्ण न्यायिक निर्णय नीचे देखें

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