प्रकरण का परिचय
पटना उच्च न्यायालय में एक महत्वपूर्ण मामला आया था जिसमें एक अतिथि व्याख्याता के सेवा अधिकारों की रक्षा का प्रश्न था। यह मामला हरेराम मिश्रा बनाम बिहार राज्य के नाम से दर्ज हुआ था, जिसका निर्णय माननीय न्यायमूर्ति प्रभात कुमार सिंह द्वारा 21 अक्टूबर 2024 को दिया गया।
पृष्ठभूमि और तथ्य
हरेराम मिश्रा, जो मधुबनी जिले के लक्ष्मीपुर गांव के निवासी हैं, ने सरकारी पॉलिटेक्निक दरभंगा में 27 फरवरी 2017 से अतिथि व्याख्याता (विद्युत इंजीनियरिंग) के रूप में सेवा की है। उन्होंने अपनी सेवा के दौरान राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान, भोपाल से एक अल्पकालिक प्रशिक्षण कार्यक्रम भी सफलतापूर्वक पूरा किया था।
विवाद का मुद्दा
समस्या तब शुरू हुई जब सरकार ने 11 सितंबर 2024 को साक्षात्कार सूचना संख्या 1/2024-25 जारी की, जिसमें सरकारी पॉलिटेक्निक दरभंगा में व्याख्याता पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए। हरेराम मिश्रा को डर था कि इस नई भर्ती प्रक्रिया के कारण उनकी सेवाएं समाप्त हो जाएंगी, जबकि वे पिछले सात वर्षों से निरंतर सेवा दे रहे थे।
न्यायालय के समक्ष प्रार्थना
याचिकाकर्ता ने न्यायालय से दो मुख्य प्रार्थनाएं कीं:
- उन्हें अतिथि व्याख्याता के रूप में काम जारी रखने की अनुमति दी जाए
- 11 सितंबर 2024 की विज्ञापन/साक्षात्कार सूचना को रद्द किया जाए
याचिकाकर्ता की दलीलें
याचिकाकर्ता के वकील श्री बिनोदानंद मिश्रा ने निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए:
निरंतर सेवा का तर्क: हरेराम मिश्रा ने 2017 से लगातार सेवा की है और केवल शिक्षण कार्य ही नहीं बल्कि प्रशासनिक कार्यों की भी जिम्मेदारी संभाली है।
योग्यता का प्रमाण: उन्होंने अपनी योग्यता बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय स्तर की संस्था से प्रशिक्षण लिया है।
कानूनी आधार: याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के दो महत्वपूर्ण फैसलों का हवाला दिया:
- मनीष गुप्ता बनाम अध्यक्ष, जन भागीदारी समिति (2022)
- हरगुरप्रताप सिंह बनाम पंजाब राज्य (2007)
सरकार की स्थिति
दिलचस्प बात यह है कि सरकार के वकील ने याचिकाकर्ता की दलीलों का विरोध नहीं किया। इससे पता चलता है कि सरकार भी हरेराम मिश्रा की सेवाओं को लेकर संतुष्ट थी।
न्यायालय का विश्लेषण और सिद्धांत
माननीय न्यायमूर्ति प्रभात कुमार सिंह ने इस मामले में एक महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत स्थापित किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि:
मुख्य सिद्धांत: "एक संविदा आधार पर नियुक्त अतिथि व्याख्याता को दूसरे संविदा कर्मचारी/अतिथि संकाय से प्रतिस्थापित नहीं किया जाना चाहिए।"
संस्थान के अधिकार: हालांकि, संस्थान को अतिरिक्त अतिथि व्याख्याताओं को नियुक्त करने से रोका नहीं जा सकता।
प्राथमिकता का सिद्धांत: यदि नियमित रूप से चयनित व्याख्याता उपलब्ध हो जाते हैं, तो "अंत में आए, पहले जाएं" (Last Came First Go) का सिद्धांत लागू होगा।
वरिष्ठता का महत्व: जो व्याख्याता लंबे समय से काम कर रहे हैं, उन्हें तब तक काम जारी रखने की अनुमति दी जानी चाहिए जब तक कि सभी पद नियमित आधार पर नहीं भर जाते।
न्यायालय का अंतिम निर्णय
न्यायालय ने निम्नलिखित आदेश दिए:
सेवा की निरंतरता: हरेराम मिश्रा की सेवाएं समाप्त नहीं की जाएंगी।
काम की अनुमति: उन्हें तब तक काम जारी रखने की अनुमति दी गई जब तक नियमित रूप से चयनित उम्मीदवार ज्वाइन नहीं करते।
कोई अतिरिक्त निर्देश नहीं: न्यायालय ने माना कि कोई और निर्देश देने की आवश्यकता नहीं है।
इस निर्णय का व्यापक महत्व
यह निर्णय केवल हरेराम मिश्रा के लिए ही नहीं बल्कि देश भर के अतिथि व्याख्याताओं के लिए एक मार्गदर्शक प्रकाश है। इससे निम्नलिखित सिद्धांत स्थापित होते हैं:
नैतिक न्याय: लंबे समय से सेवा देने वाले व्यक्ति को अचानक हटाना न्यायसंगत नहीं है।
सेवा की गुणवत्ता: योग्यता और अनुभव का महत्व केवल कागजी प्रक्रिया से कहीं अधिक है।
कानूनी संरक्षण: अतिथि व्याख्याताओं के भी कुछ अधिकार हैं जिनकी रक्षा न्यायालय करता है।
शिक्षा क्षेत्र पर प्रभाव
यह निर्णय शिक्षा क्षेत्र में कार्यरत अस्थायी कर्मचारियों के लिए आशा की किरण है। यह दर्शाता है कि न्यायपालिका उन लोगों के अधिकारों की रक्षा करने को तैयार है जो निष्ठा और ईमानदारी से अपना काम कर रहे हैं।
निष्कर्ष
हरेराम मिश्रा का यह मामला न्याय व्यवस्था की उस भावना को दर्शाता है जो कहती है कि मेहनत और निष्ठा का फल अवश्य मिलना चाहिए। यह निर्णय अतिथि व्याख्याताओं के समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी आधार प्रदान करता है और भविष्य में इसी तरह के मामलों में एक मजबूत आधार के रूप में काम करेगा।
यह फैसला इस बात का प्रमाण है कि भारतीय न्यायपालिका न केवल कानून का पालन करती है बल्कि सामाजिक न्याय और नैतिकता के सिद्धांतों को भी ध्यान में रखती है।
संपूर्ण न्यायालयीन निर्णय नीचे पढ़ें
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