परिचय
भारत में मादक पदार्थों (गांजा, चरस आदि) से संबंधित अपराधों पर सख्त कानून है – NDPS Act, 1985। लेकिन क्या हो जब पुलिस जांच प्रक्रिया की मूलभूत प्रक्रियाओं की ही अनदेखी करे और दो निर्दोष व्यक्ति बिना पुख्ता सबूतों के 20 साल की सजा पाएँ?
पटना हाई कोर्ट ने Ram Chandra Singh और Gulab Chand Singh को ऐसे ही एक मामले में बाइज्जत बरी किया, जहां न्यायालय ने कहा – “पूरी कार्यवाही कल्पना पर आधारित थी, सबूतों का नामोनिशान नहीं”।
मामले की पृष्ठभूमि
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एफआईआर संख्या: तराबाड़ी थाना कांड संख्या 01/2014, जिला – अररिया
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घटना की तिथि: 05 जनवरी 2014
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मामला: गांजा की तस्करी का आरोप
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पुलिस की कार्रवाई: रात में तीन लोग दो मोटरसाइकिलों पर सवार होकर नेपाल की ओर से आते दिखे। पुलिस को देखकर मोटरसाइकिल छोड़कर भाग गए। एक प्लास्टिक की बोरी से 40 किलो गांजा बरामद हुआ।
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गिरफ्तारी: पुलिस ने कहा कि एक बाइक गुलाब चंद सिंह की थी, इसलिए उसे और राम चंद्र सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया।
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सजा: 20 साल की कठोर कारावास और ₹1 लाख जुर्माना (जेल विशेष न्यायालय NDPS एक्ट, अररिया द्वारा)
कोर्ट में मुख्य प्रश्न
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क्या अभियुक्तों की पहचान की पुष्टि की गई थी?
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क्या NDPS एक्ट की धारा 42 (गोपनीय सूचना की लिखित सूचना और उच्चाधिकारी को भेजना) का पालन हुआ?
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क्या गांजा के सैंपलिंग और सीलिंग की प्रक्रिया विधिसम्मत थी?
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अभियुक्तों को अभियोजन से जोड़ने के लिए कोई मजबूत सबूत था या नहीं?
हाई कोर्ट में सुनवाई की प्रमुख बातें
🟢 पहचान का कोई प्रमाण नहीं:
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अभियुक्तों को घटना स्थल पर किसी ने नहीं देखा।
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PW-1 (SSB अधिकारी) ने केवल इतना कहा कि उन्होंने सुना था कि एक बाइक किसी अभियुक्त की थी।
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कोई गवाह नहीं जो यह कहे कि गिरफ्तार व्यक्ति वही थे जो गांजा लेकर भागे।
🟠 NDPS Act की धारा 42 का उल्लंघन:
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गुप्त सूचना मिलने के बावजूद लिखित रिकॉर्ड या उच्चाधिकारी को सूचित करने का कोई सबूत नहीं।
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सुप्रीम कोर्ट के फैसलों में इसे अनिवार्य माना गया है (Karnail Singh v. State of Haryana (2009), Abdul Rashid Ibrahim Mansuri v. State of Gujarat (2000))।
🔴 सैंपलिंग और सीलिंग में भारी खामियां:
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PW-1 ने बताया कि सैंपल उन्होंने नहीं लिया।
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जांच अधिकारी ने सामान्य रूप से कहा कि सैंपल लिया गया, पर कैसे, कब, किसके सामने – कोई विवरण नहीं।
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सैंपल 2 महीने बाद फॉरेंसिक लैब भेजा गया – देरी का कोई स्पष्टीकरण नहीं।
⚫ गुलाब चंद की बाइक होना ही आधार बना गिरफ्तारी का:
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पुलिस ने बस यह माना कि बाइक गुलाब चंद की थी और वह खुद चला रहा था – इस पर कोई जांच या गवाही नहीं।
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बाइक अगर किसी और ने चलाई हो, तो? कोई सीसीटीवी नहीं, कोई चश्मदीद नहीं।
⚫ राम चंद्र सिंह को क्यों पकड़ा गया – कोई स्पष्टीकरण नहीं:
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कोर्ट ने इसे “पूर्ण रहस्य” बताया कि राम चंद्र को केस से कैसे जोड़ा गया।
कोर्ट का निर्णय (23 सितंबर 2024)
“जांच में इतनी खामियां हैं कि अभियुक्तों को दोषी ठहराना न्याय का अपमान होगा।”
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अभियोजन ने अपने दायित्व को पूरा नहीं किया।
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कोई प्रत्यक्ष या परिस्थितिजन्य साक्ष्य नहीं जो दोनों को अपराध से जोड़ सके।
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सेक्शन 42 का उल्लंघन, सैंपलिंग की प्रक्रिया में दोष, पहचान का अभाव, बिना जांच के आरोप – सभी ने अभियोजन की कहानी को अविश्वसनीय बना दिया।
न्यायालय का आदेश:
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दोषसिद्धि और सजा रद्द की गई।
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दोनों अभियुक्तों को तत्काल रिहा करने का आदेश।
न्यायिक टिप्पणी
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9 वर्षों तक दोनों अभियुक्तों ने जेल में सजा भोगी, जबकि मुकदमा कल्पनाओं और प्रक्रियात्मक त्रुटियों पर आधारित था।
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यह फैसला NDPS कानून के तहत पुलिस द्वारा की गई जांच की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
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"कानून की सख्ती आवश्यक है, लेकिन निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए" – इस सिद्धांत को कोर्ट ने पुनः स्थापित किया।
निष्कर्ष
यह मामला न्याय प्रणाली के लिए एक चेतावनी है कि NDPS जैसे कठोर कानूनों का दुरुपयोग न हो। जब जांच एजेंसियां अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में विफल रहती हैं, तो इसका खामियाजा निर्दोषों को भुगतना पड़ता है।
यह निर्णय विधिक प्रक्रिया, न्यायसंगत सुनवाई, और मूलभूत अधिकारों की रक्षा के लिए मील का पत्थर है।
पूरा
फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NSMxMTAjMjAxOCMxI04=-L9vtqzl0aNA=
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