न्यायालय का सरलीकृत निर्णय
इस मामले में याचिकाकर्ता, जो एक दृष्टिबाधित महिला थीं, ने अपनी प्रखंड शिक्षक की नियुक्ति रद्द होने को चुनौती दी। उन्हें कटिहार जिले में दृष्टिबाधित (UR-F) आरक्षित कोटे के अंतर्गत नियुक्त किया गया था। बाद में, उनकी नियुक्ति को रद्द कर एक मौलवी डिग्रीधारी उम्मीदवार की नियुक्ति कर दी गई।
याचिकाकर्ता का कहना था कि मौलवी डिग्रीधारी व्यक्ति केवल उर्दू शिक्षक पद के लिए योग्य था, सामान्य विषय शिक्षक के लिए नहीं। साथ ही, उसके विकलांगता प्रमाण पत्र की वैधता पर भी सवाल उठाया गया।
पटना उच्च न्यायालय ने पाया कि यह नियुक्ति प्रक्रिया क्षैतिज आरक्षण के तहत की गई थी। मौलवी डिग्रीधारी उम्मीदवार ने विकलांग श्रेणी में उच्च अंक प्राप्त किए थे और उसने उर्दू शिक्षक के पद के लिए आवेदन किया था, जहां रिक्तियाँ उपलब्ध थीं। साथ ही, उसके विकलांगता प्रमाण पत्र को अधिकृत चिकित्सा अधिकारी द्वारा सत्यापित किया गया था।
अतः अदालत ने जिला और राज्य अपीलीय प्राधिकरणों के आदेशों को सही ठहराया और याचिका खारिज कर दी।
निर्णय का महत्व
यह निर्णय शिक्षकों की नियुक्तियों में क्षैतिज आरक्षण की व्याख्या को स्पष्ट करता है। इससे यह भी स्पष्ट हुआ कि विषय-विशिष्ट योग्यता और मेरिट सूची का पालन अनिवार्य है। यह निर्णय भर्ती प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और प्रमाण पत्रों की वैधता सुनिश्चित करने के लिए भी मार्गदर्शक है।
न्यायालय द्वारा तय किए गए प्रमुख मुद्दे
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क्या मौलवी डिग्रीधारी को सामान्य शिक्षक पद पर नियुक्त किया जा सकता था? नहीं, लेकिन उन्हें उर्दू शिक्षक के पद पर सही तरीके से नियुक्त किया गया।
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क्या क्षैतिज आरक्षण ठीक से लागू हुआ? हां, विकलांग श्रेणी में मेरिट के अनुसार चयन हुआ।
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क्या विकलांगता प्रमाण पत्र वैध था? हां, चिकित्सा पदाधिकारी द्वारा पुष्टि की गई।
वाद शीर्षक
वंदना कुमारी @ बंदना कुमारी बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
वाद संख्या
CWJC No. 4217 of 2020
उद्धरण
2024(4)PLJR 517
पीठ और न्यायाधीशों के नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति अंजनी कुमार शरण
अधिवक्ताओं के नाम
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याचिकाकर्ता की ओर से: श्री अरुण कुमार
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प्रतिवादियों की ओर से: श्री माधव प्रसाद यादव (GP23), श्री शिवेंद्र प्रसाद
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