निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि यदि किसी भूमि विवाद के दौरान कोई व्यक्ति किसी प्रतिवादी से विवादित संपत्ति का खरीदार बनता है, तो उसे वाद में पक्षकार बनाए जाने से इनकार करना अनुचित होगा, खासकर जब खरीदी गई भूमि वादग्रस्त हो।
इस मामले में, याचिकाकर्ता ने आरारिया जिले में चल रहे वाद (Title Suit No. 64/2011) में Order 1 Rule 10(2) CPC के अंतर्गत खुद को पक्षकार बनाने की अर्जी दी थी। उन्होंने वाद के दौरान प्रतिवादी संख्या 8 और 9 से 2.16 एकड़ भूमि खरीदी थी। यद्यपि खरीदी गई भूमि वादग्रस्त थी, निचली अदालत ने उनकी याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि उनका हित पहले से ही विक्रेताओं द्वारा प्रतिनिधित्व किया जा रहा है।
याचिकाकर्ता ने कई सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए दलील दी कि एक “transferee pendente lite” अर्थात मुकदमे के दौरान खरीदार, “representative-in-interest” होता है और उसे पक्षकार बनने का अधिकार है ताकि वह अपने हितों की रक्षा कर सके। न्यायालय ने इन तर्कों को स्वीकार किया और निचली अदालत के आदेश को रद्द करते हुए याचिकाकर्ता को वाद में पक्षकार बनने की अनुमति दी।
इस निर्णय का महत्व क्या है?
यह निर्णय भूमि विवादों के संदर्भ में अति महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से उन खरीदारों के लिए जो वादग्रस्त संपत्ति को खरीदते हैं। यह स्पष्ट करता है कि ऐसे खरीदारों को मुकदमे में शामिल होने का अधिकार है ताकि वे अपने स्वामित्व और हितों की रक्षा कर सकें। यह प्रावधान अचल संपत्ति की पारदर्शिता और खरीदार के अधिकारों की रक्षा को भी सुदृढ़ करता है।
तय किए गए कानूनी मुद्दे
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क्या वाद के दौरान संपत्ति खरीदने वाला व्यक्ति वाद में पक्षकार बन सकता है?
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क्या निचली अदालत द्वारा ऐसे व्यक्ति को पक्षकार बनने से इनकार करना विधिसम्मत था?
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Order 1 Rule 10(2) CPC के अंतर्गत किसे “necessary” और “proper” party माना जाता है?
पक्षकारों द्वारा संदर्भित निर्णय
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Amit Kumar Shaw v. Farida Khatoon, AIR 2005 SC 2209 – ट्रांसफरी pendente lite को पक्षकार बनाए जाने की अनुमति।
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Mumbai International Airport v. Regency Convention Centre, (2010) 7 SCC 417 – न्यायालय द्वारा उचित पक्षकार को शामिल करने का विवेकाधिकार।
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Sumtibai v. Paras Finance Co., (2007) 10 SCC 82 – अंशत: हित रखने वाले को पक्षकार बनाए जाने का अधिकार।
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Kasturi v. Iyyamperumal, (2005) 6 SCC 733 – “necessary” और “proper” party की परिभाषा।
न्यायालय द्वारा अपनाए गए निर्णय
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“वाद के दौरान खरीदार होने के कारण याचिकाकर्ता का मुकदमे में प्रतिवेश आवश्यक है। निचली अदालत द्वारा उसका पक्षकार बनने से इनकार करना अधिकार क्षेत्र की त्रुटि थी।”
केस शीर्षक
Md. Ismail @ Md. Ismail Azad बनाम अन्य
केस नंबर
Civil Miscellaneous Jurisdiction No.1346 of 2016
निर्णय का संदर्भ
2024(4)PLJR
पीठ और न्यायाधीशों के नाम
माननीय न्यायमूर्ति अरुण कुमार झा
वकीलों के नाम जिन्होंने पक्ष प्रस्तुत किया और किसके लिए प्रस्तुत किया
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याचिकाकर्ता के लिए: श्री राघिब अहसन (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री वासी अख्तर, श्री अशर अख्तर
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प्रतिवादियों के लिए: श्री संजय कुमार शर्मा
निर्णय की आधिकारिक लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NDQjMTM0NiMyMDE2IzEjTg==-kb81NHiZfFo=
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