पटना उच्च न्यायालय ने दिनांक 22 अक्टूबर 2024 को एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए एक निष्कासन आदेश को बरकरार रखा। यह आदेश याचिकाकर्ताओं द्वारा निष्कासन कार्यवाही में दायर की गई आपत्तियों की अस्वीकृति के विरुद्ध दायर याचिका पर पारित हुआ। याचिका भारतीय संविधान के अनुच्छेद 227 के अंतर्गत दायर की गई थी।
मामला एक पारिवारिक संपत्ति विवाद से जुड़ा था, जहाँ याचिकाकर्ता स्वर्गीय मखदूम खान के उत्तराधिकारी थे। संपत्ति मूलतः मखदूम खान के पिता खादिम खान द्वारा खरीदी गई थी, लेकिन उन्होंने यह संपत्ति अपनी दूसरी पत्नी अशमा खातून के नाम पर पंजीकृत कराई थी। विवादित मकान अशमा खातून के नाम पर था, और बाद में दावा किया गया कि उन्होंने इसे मौखिक रूप से अपने पति को उपहार स्वरूप दे दिया। इसके बाद, खादिम खान ने अपने पुत्र मखदूम खान के नाम एक पंजीकृत उपहार पत्र बनाया।
हालांकि, खादिम खान की बेटी ने इस उपहार पत्र को चुनौती देते हुए 1991 में वाद दाखिल किया, जिसे 1993 में न्यायालय ने वैध मानते हुए उपहार पत्र को अमान्य घोषित कर दिया। इस निर्णय के विरुद्ध अपील की गई, लेकिन वह भी 2005 में खारिज हो गई। अब यह मामला उच्च न्यायालय में द्वितीय अपील (Second Appeal No. 33/2006) के रूप में लंबित है।
इस बीच, संपत्ति में रह रहे किराएदार के विरुद्ध निष्कासन वाद दायर हुआ जो 2013 में याचिकाकर्ताओं के विरुद्ध निर्णयित हुआ। जब निष्कासन की प्रक्रिया शुरू हुई, तब याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि वे वैध उत्तराधिकारी हैं और संपत्ति पर उनका अधिकार है, इसीलिए निष्कासन नहीं हो सकता। उन्होंने सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 21 के नियम 97 और 99 के अंतर्गत आपत्तियां दायर कीं।
लेकिन अधीनस्थ न्यायालय ने उनकी याचिकाएं यह कहते हुए खारिज कर दीं कि वे अजनबी (strangers) हैं और उनके पास कोई वैध अधिकार नहीं है। उच्च न्यायालय ने भी इस आदेश को सही ठहराते हुए कहा कि याचिकाकर्ता, जिनके दावे पहले ही खारिज हो चुके हैं, अब निष्कासन प्रक्रिया को रोकने के लिए इसे आधार नहीं बना सकते।
यह निर्णय क्यों महत्वपूर्ण है?
यह निर्णय इस बात को स्पष्ट करता है कि निष्कासन प्रक्रिया को केवल इसलिए नहीं रोका जा सकता क्योंकि कोई व्यक्ति यह दावा करता है कि उसका संपत्ति पर अधिकार है। जब तक उसके पास वैध और स्थापित अधिकार नहीं है, उसे निष्कासन से संरक्षण नहीं मिलेगा।
यह निर्णय किरायेदारों, उत्तराधिकारियों और संपत्ति विवादों से जुड़े पक्षों के लिए एक दिशा-निर्देश के रूप में कार्य करेगा।
मुख्य कानूनी मुद्दे:
क्या निष्कासन की प्रक्रिया के दौरान उत्तराधिकारी आपत्ति दायर कर सकते हैं?
क्या संपत्ति पर आंशिक या विवादित उत्तराधिकार निष्कासन को रोक सकता है?
क्या निष्कासन वाद में सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 21 के नियम 97, 99 और 101 लागू होते हैं?
संदर्भित निर्णय:
Mool Chand Yadav v. Raza Buland Sugar Co. Ltd., (1982) 3 SCC 484
Tej Rani Devi v. Indira Devi, (2001) 1 PLJR 661
Sanjoy Verma v. Longi Devi, Civil Appeal No. 8775 of 2013
Noorduddin v. K.L. Anand, (1995) 1 SCC 242
Union of India v. Shapoorji Palloonji and Co. Pvt. Ltd., AIR 2023 SC 5153
केस शीर्षक:
Civil Miscellaneous Jurisdiction No. 411 of 2024
केस नंबर:
C.Misc. No. 411/2024
निर्णय का संदर्भ:
पीठ और न्यायाधीश:
माननीय श्री न्यायमूर्ति अरुण कुमार झा
वकीलों के नाम:
याचिकाकर्ता के लिए: श्री अमित श्रीवास्तव (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री पुनीत सिद्धार्थ, श्री गिरीश पांडेय
प्रतिकर्ता के लिए: श्री देवेंद्र कुमार सिन्हा (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री अखौरी विपिन बिहारी श्रीवास्तव, सुश्री पतला कुमारी
आधिकारिक लिंक:
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