शिक्षक के वेतन संरक्षण और वार्षिक वेतन वृद्धि के अधिकार: एक न्यायिक विजय की गाथा


प्रकरण का परिचय

पटना उच्च न्यायालय में दायर सिविल रिट क्षेत्राधिकार मामला संख्या 13716/2016 में न्यायमूर्ति अनिल कुमार सिन्हा द्वारा दिया गया निर्णय शिक्षकों के वेतन अधिकारों के संबंध में एक महत्वपूर्ण मिसाल स्थापित करता है। यह मामला इंतखाब आलम बनाम बिहार राज्य के नाम से जाना जाता है, जिसमें एक प्राथमिक शिक्षक ने अपने वेतन निर्धारण और वार्षिक वेतन वृद्धि के अधिकार के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।

वादी की पृष्ठभूमि

इंतखाब आलम, जो सीतामढ़ी जिले के बेलहियान बखरी गांव का निवासी है, मूल रूप से 5 फरवरी 2007 को पंचायत शिक्षक के रूप में नियुक्त हुआ था। उसकी नियुक्ति प्राथमिक विद्यालय, मधुबनी टोले, पंचायत बखरी, ब्लॉक बठनाहा, सीतामढ़ी में हुई थी। बाद में, वह TET परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद 2012-13 के नवीन चयन प्रक्रिया में भाग लिया और नगर शिक्षक के रूप में चयनित हुआ।

कानूनी आधार और नोटिफिकेशन

शिक्षा विभाग ने अधिसूचना संख्या 429 दिनांक 22.06.2012 जारी की थी, जो बिहार पंचायत प्राथमिक शिक्षक (नियुक्ति और सेवा शर्त) नियम, 2012 के नियम 17 के तहत जारी की गई थी। इस अधिसूचना के खंड 8 में यह प्रावधान था कि पूर्व में नियुक्त शिक्षक जिन्होंने TET परीक्षा उत्तीर्ण की है, वे नवीन नियुक्ति के लिए आवेदन कर सकते हैं। इस स्थिति में द्वितीय नियुक्ति को प्रथम नियुक्ति माना जाएगा और वेतन संरक्षण के अतिरिक्त पूर्व सेवाओं का अन्य लाभों के लिए विचार नहीं किया जाएगा।

वेतन निर्धारण की समस्या

वादी ने 2011 में TET परीक्षा उत्तीर्ण की और पंचायत सचिव से अनुमति प्राप्त करके 2012-13 की चयन प्रक्रिया में भाग लिया। उसका चयन बेसिक ग्रेड उर्दू नगर शिक्षक के रूप में प्राथमिक विद्यालय, बड़ी बाजार, सीतामढ़ी में हुआ। 18 फरवरी 2014 को नई नियुक्ति में शामिल होने पर उसे रु. 9600/- वेतन मिला, जबकि अन्य शिक्षकों को रु. 9000/- मिल रहा था। यह वेतन संरक्षण खंड 8 के अनुसार दिया गया था।

नवीन वेतनमान योजना

राज्य सरकार ने संकल्प संख्या 1530 दिनांक 11.08.2015 के माध्यम से 01.07.2015 से प्रभावी नवीन वेतनमान योजना की घोषणा की। इस योजना के अनुसार प्राथमिक शिक्षकों के लिए निम्नलिखित वेतनमान निर्धारित किए गए:

  • अप्रशिक्षित प्राथमिक शिक्षक: 5200-20200 (ग्रेड पे 0)
  • प्रशिक्षित प्राथमिक शिक्षक: 5200-20200 (ग्रेड पे 2000)
  • स्नातक ग्रेड अप्रशिक्षित: 5200-20200 (ग्रेड पे 0)
  • स्नातक ग्रेड प्रशिक्षित: 5200-20200 (ग्रेड पे 2400)

वादी की मांगें

वादी ने निम्नलिखित मुख्य मांगें प्रस्तुत कीं:

  1. वेतन संरक्षण का लाभ दिया जाए
  2. संकल्प के अनुसार वार्षिक वेतन वृद्धि @ 3% प्रति वर्ष तीन वर्ष की पूर्व सेवा के लिए दी जाए
  3. बिना दो वर्ष की सेवा पूर्ण किए ग्रेड पे रु. 2000/- का लाभ दिया जाए

न्यायालय का विश्लेषण

न्यायालय ने मामले का गहन अध्ययन करने के बाद निम्नलिखित मुख्य बिंदुओं पर विचार किया:

वार्षिक वेतन वृद्धि का मुद्दा

संकल्प के खंड 2.3 और 2.4 के अनुसार प्रशिक्षित और अप्रशिक्षित दोनों प्रकार के शिक्षकों को तीन वर्ष की पूर्व सेवा के लिए 3% वार्षिक वेतन वृद्धि का लाभ देय है। न्यायालय ने पाया कि वादी ने 2007 से प्राथमिक शिक्षक के रूप में सेवा की है और बाद में 2012/2014 में प्रशिक्षण प्राप्त किया। प्रशिक्षण की तिथि वार्षिक वेतन वृद्धि के लिए प्रासंगिक नहीं है क्योंकि खंड 2.4 अप्रशिक्षित शिक्षकों को भी यह लाभ देता है।

ग्रेड पे का मुद्दा

संकल्प के खंड 2.8 के अनुसार प्रशिक्षित शिक्षकों को रु. 2000/- ग्रेड पे केवल दो वर्ष की सेवा पूर्ण करने के बाद ही मिलेगा। प्रारंभिक दो वर्षों में प्रशिक्षित शिक्षक को अप्रशिक्षित शिक्षक के समान वेतनमान मिलेगा। वादी की नियुक्ति 18.02.2014 को हुई थी, इसलिए उसे 18.02.2016 से ग्रेड पे का लाभ मिलना उचित था।

न्यायालय का निर्णय

न्यायमूर्ति अनिल कुमार सिन्हा ने अपने विस्तृत विचार के बाद निम्नलिखित निर्णय दिया:

स्वीकृत मांगें

  1. वार्षिक वेतन वृद्धि: वादी को 2007 से अपनी प्रारंभिक नियुक्ति से तीन वर्ष की पूर्व सेवा के लिए 3% वार्षिक वेतन वृद्धि का लाभ दिया जाना चाहिए।
  2. परिणामी मौद्रिक लाभ: सभी देय बकाया राशि सहित परिणामी मौद्रिक लाभ इस आदेश की प्राप्ति से तीन महीने की अवधि में दिया जाना चाहिए।

अस्वीकृत मांगें

  1. वेतन संरक्षण: वादी के वकील ने स्वयं इस मांग को वापस ले लिया था।
  2. तत्काल ग्रेड पे: दो वर्ष की सेवा पूर्ण करने से पहले ग्रेड पे की मांग को अस्वीकार कर दिया गया।

निर्णय का महत्व

यह निर्णय शिक्षकों के वेतन अधिकारों के संबंध में कई महत्वपूर्ण सिद्धांत स्थापित करता है:

  1. पूर्व सेवा का महत्व: शिक्षकों की पूर्व सेवा को वार्षिक वेतन वृद्धि के लिए मान्यता दी जानी चाहिए।
  2. नियमों की स्पष्ट व्याख्या: सरकारी संकल्पों और नियमों की व्याख्या उनकी मूल भावना के अनुसार की जानी चाहिए।
  3. न्यायिक संरक्षण: शिक्षकों के वैध अधिकारों की न्यायिक संरक्षण की गारंटी है।

व्यापक प्रभाव

इस निर्णय का बिहार राज्य के हजारों शिक्षकों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है। यह निर्णय उन सभी शिक्षकों के लिए मार्गदर्शक है जो समान परिस्थितियों में हैं और अपने वेतन अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

निष्कर्ष

पटना उच्च न्यायालय का यह निर्णय शिक्षा क्षेत्र में कार्यरत व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा में एक महत्वपूर्ण कदम है। न्यायमूर्ति अनिल कुमार सिन्हा द्वारा दिया गया यह निर्णय न केवल इंतखाब आलम के मामले का न्यायसंगत समाधान प्रस्तुत करता है, बल्कि भविष्य के समान मामलों के लिए एक मजबूत कानूनी आधार भी स्थापित करता है। यह निर्णय दर्शाता है कि न्यायपालिका शिक्षकों के वैध अधिकारों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और सरकारी नीतियों की उचित व्याख्या एवं क्रियान्वयन सुनिश्चित करने में अपनी भूमिका निभाती है।

 संपूर्ण फैसला नीचे पढ़ें

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