मामले का परिचय
यह एक दुखद घटना की कहानी है जो 19 जून 2012 को घटित हुई थी। विजय कुमार जैसवाल नाम के एक 43 वर्षीय शिक्षक की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। वे जवाहर नवोदय विद्यालय, पूर्णिया में शिक्षक के रूप में कार्यरत थे। इस मामले में पटना उच्च न्यायालय द्वारा 24 अक्टूबर 2024 को दिया गया निर्णय न्यायाधीश सुनील दत्त मिश्रा के नेतृत्व में आया।
दुर्घटना का विवरण
विजय कुमार जैसवाल मुज़फ्फरपुर से मोतिहारी जा रहे थे। वे जीप रजिस्ट्रेशन नंबर BR-06PB-0315 में यात्रा कर रहे थे। जब वाहन मुस्लिम टोला चाप में बजरंग लाइन होटल के पास NH-28 पर पहुंचा, तो चालक राज कुमार की लापरवाही और तेज़ रफ़्तार के कारण जीप एक सड़क किनारे खड़ी JCB मशीन से टकरा गई। इस दुर्घटना में विजय कुमार को गंभीर चोटें आईं और उन्हें सदर अस्पताल मोतिहारी ले जाया गया, जहाँ उनकी मृत्यु हो गई।
पुलिस केस और कानूनी कार्रवाई
इस घटना के संबंध में पिपरा मुज़फ्फरपुर थाना में केस नंबर 160/2012 दर्ज किया गया। यह मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 279 (लापरवाही से वाहन चलाना) और धारा 304-A (गैर-इरादतन हत्या) के तहत दर्ज हुआ।
क्लेम केस की शुरुआत
मृतक की पत्नी नीलम कुमारी और दो नाबालिग बच्चों (निवेदिता और दिव्यांश) ने मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल, मुज़फ्फरपुर में क्लेम केस नंबर 161/2013 दायर किया। उन्होंने न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी से मुआवजे की मांग की क्योंकि दुर्घटनाग्रस्त वाहन इसी कंपनी से बीमित था।
ट्रिब्यूनल का प्रारंभिक फैसला
प्रारंभिक रूप से, मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल ने 23 जनवरी 2018 के अपने निर्णय में दावेदारों को कुल 65,48,760 रुपए का मुआवजा दिया था। यह राशि निम्नलिखित मदों के आधार पर तय की गई थी:
मुआवजे का विवरण (ट्रिब्यूनल द्वारा):
- मासिक वेतन: 39,173 रुपए
- वार्षिक आय: 4,68,876 रुपए
- व्यक्तिगत खर्च की कटौती (1/3): 1,56,292 रुपए
- शुद्ध वार्षिक आय: 3,12,584 रुपए
- गुणक (43 वर्ष की आयु के लिए): 15
- निर्भरता की हानि: 46,88,760 रुपए
- भविष्य की संभावनाओं की हानि: 15,00,000 रुपए
- संपत्ति की हानि: 1,00,000 रुपए
- प्रेम और स्नेह की हानि: 1,00,000 रुपए
- पत्नी के साथ संबंध की हानि: 1,00,000 रुपए
- अंतिम संस्कार का खर्च: 10,000 रुपए
बीमा कंपनी की अपील
न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी इस फैसले से संतुष्ट नहीं थी और उन्होंने पटना उच्च न्यायालय में अपील दायर की। बीमा कंपनी के मुख्य तर्क थे:
- योगदानकारी लापरवाही: कंपनी का कहना था कि यह JCB और जीप दोनों की गलती से हुई दुर्घटना थी
- नकली परमिट: वाहन का परमिट नकली था
- चालक का लाइसेंस: चालक को वाणिज्यिक वाहन चलाने का अधिकार नहीं था
- वेतन की गलत गणना: मृतक के वेतन से टैक्स की कटौती नहीं की गई थी
- भविष्य की संभावनाओं की अधिक दर: 43 वर्ष की आयु में 50% भविष्य की संभावना अत्यधिक थी
उच्च न्यायालय का विश्लेषण
चालक का लाइसेंस मुद्दा
न्यायालय ने मुकुंद देवांगन बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस लिमिटेड (2017) के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि LMV लाइसेंस धारक 7,500 किलो तक के ट्रांसपोर्ट वाहन चला सकता है। चूंकि दुर्घटनाग्रस्त वाहन का चालक वैध लाइसेंस रखता था, इसलिए "पे एंड रिकवर" का सिद्धांत लागू नहीं होता।
वेतन और टैक्स की गणना
न्यायालय ने सरला वर्मा बनाम दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (2009) और प्रणय सेठी के मामले (2017) का संदर्भ देते हुए कहा कि वास्तविक वेतन से आयकर की कटौती करनी चाहिए।
संशोधित गणना:
- मासिक वेतन: 39,173 रुपए
- वार्षिक आय: 4,70,000 रुपए (राउंड ऑफ)
- आयकर (2013-14): 27,000 रुपए
- शुद्ध वार्षिक आय: 4,43,000 रुपए
गुणक (मल्टीप्लायर) में संशोधन
43 वर्ष की आयु के लिए गुणक 15 के बजाय 14 होना चाहिए था (41-45 वर्ष आयु समूह के लिए)।
पारंपरिक मदों में संशोधन
प्रणय सेठी के मामले के अनुसार पारंपरिक मदों की दरें:
- संपत्ति की हानि: 15,000 रुपए (10% वृद्धि के साथ): 18,150 रुपए
- कंसोर्टियम की हानि: प्रत्येक दावेदार के लिए 40,000 रुपए (10% वृद्धि के साथ): कुल 1,45,200 रुपए
- अंतिम संस्कार: 15,000 रुपए (10% वृद्धि के साथ): 18,150 रुपए
उच्च न्यायालय का अंतिम फैसला
संशोधित मुआवजे की गणना:
- मासिक वेतन: 39,173 रुपए
- वार्षिक आय: 4,70,000 रुपए
- आयकर की कटौती: 27,000 रुपए
- शुद्ध वार्षिक आय: 4,43,000 रुपए
- व्यक्तिगत खर्च की कटौती (1/3): 1,47,667 रुपए
- कटौती के बाद वार्षिक आय: 2,95,333 रुपए
- भविष्य की संभावनाएं (30%): 88,600 रुपए
- गुणक: 14
- निर्भरता की हानि: 53,75,062 रुपए
- अंतिम संस्कार: 18,150 रुपए
- संपत्ति की हानि: 18,150 रुपए
- कंसोर्टियम की हानि: 1,45,200 रुपए
कुल मुआवजा: 55,56,562 रुपए पहले से भुगतान की गई अंतरिम राशि: 50,000 रुपए देय राशि: 55,06,562 रुपए
न्यायालय के निर्देश
- बीमा कंपनी को दो महीने के अंदर मुआवजे का भुगतान करना होगा
- दावा दाखिल करने की तारीख से 6% सालाना की दर से ब्याज देना होगा
- निष्पादन मामले की रोक हटा दी गई
- पहले से जमा की गई वैधानिक राशि को ट्रिब्यूनल को वापस कर दिया जाएगा
न्यायिक महत्व
यह फैसला निम्नलिखित कारणों से महत्वपूर्ण है:
- न्यायसंगत मुआवजे की गणना: सुप्रीम कोर्ट के नवीनतम दिशा-निर्देशों के अनुसार मुआवजे की गणना
- टैक्स कटौती का सिद्धांत: वेतन से आयकर की उचित कटौती का महत्व
- कंसोर्टियम के व्यापक अर्थ: केवल पत्नी को नहीं बल्कि सभी आश्रितों को कंसोर्टियम की हानि का मुआवजा
- चालक लाइसेंस की व्याख्या: LMV लाइसेंस की व्यापक व्याख्या
निष्कर्ष
इस मामले में पटना उच्च न्यायालय ने न्याय और कानून के बीच संतुलन बनाते हुए एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। यद्यपि मुआवजे की राशि में कमी हुई है (65,48,760 से 55,06,562 रुपए), परंतु यह कमी कानूनी सिद्धांतों के उचित प्रयोग का परिणाम है। यह फैसला भविष्य के मोटर दुर्घटना मुआवजा मामलों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल स्थापित करता है और यह दिखाता है कि न्यायालय कैसे सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का सही पालन करते हुए न्यायसंगत मुआवजा निर्धारित करता है।
संपूर्ण फैसला नीचे पढ़ें
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