फर्जी संस्थान से प्राप्त प्रमाणपत्र पर नियुक्त शिक्षकों की सेवा समाप्ति उचित – पटना हाईकोर्ट का फैसला


परिचय

पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में उन शिक्षकों की पुनर्नियुक्ति की मांग को खारिज कर दिया, जिनकी नियुक्ति शारीरिक शिक्षक के पद पर Nav Bharat Shiksha Parishad (NSP), ओडिशा से प्राप्त प्रशिक्षण प्रमाणपत्र के आधार पर हुई थी। अदालत ने पाया कि उक्त संस्था न तो राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त थी, न UGC अथवा NCTE द्वारा। इसलिए, इस संस्था से प्राप्त प्रमाणपत्र के आधार पर की गई नियुक्ति अवैध घोषित की गई और याचिका को खारिज कर दिया गया।

मामले की पृष्ठभूमि

वर्ष 2008 में बिहार सरकार द्वारा प्रखंड शारीरिक शिक्षक के पदों पर नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया गया था। पात्रता के रूप में C.P.Ed (Certificate in Physical Education) की मांग की गई थी। याचिकाकर्ताओं—रमेश कुमार त्रिवेदी, श्री नारायण भगत, नंदलाल पंडित और बिनोद कुमार—ने यह प्रमाणपत्र Nav Bharat Shiksha Parishad (NSP), ओडिशा से प्राप्त किया था और उसी के आधार पर आवेदन किया।

इन चारों याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति वर्ष 2010 में हुई और उन्हें मुजफ्फरपुर जिले के सरैया प्रखंड के विभिन्न विद्यालयों में पदस्थापित किया गया। वे तीन वर्षों तक नियमित रूप से सेवा में बने रहे।

सेवा समाप्ति का विवाद

वर्ष 2013 में अचानक, बिना किसी नोटिस के, प्रखंड विकास पदाधिकारी (BDO), सरैया ने एक आदेश (स्मरण पत्र संख्या 471 दिनांक 05.09.2013) जारी कर इन सभी शिक्षकों की सेवा समाप्त कर दी। सेवा समाप्ति का आधार था कि याचिकाकर्ताओं ने जिन प्रमाणपत्रों के आधार पर नियुक्ति प्राप्त की थी, वे अवैध संस्थान से प्राप्त किए गए थे।

यह आदेश शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव द्वारा एक अन्य मामले में (CWJC No. 14819/2012 और LPA No. 921/2012) दिए गए निर्णय के परिप्रेक्ष्य में लिया गया था, जिसमें इसी संस्था से प्राप्त प्रमाणपत्रों को अमान्य घोषित किया गया था।

याचिकाकर्ताओं की दलीलें

याचिकाकर्ताओं की ओर से प्रस्तुत वकील ने निम्नलिखित प्रमुख बिंदु अदालत के समक्ष रखे:

  1. कोई पूर्व सूचना नहीं दी गई थी, जिससे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन हुआ।

  2. NSP संस्था की वैधता पूर्व में राज्य सरकार और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वीकार की गई थी—यह कहते हुए याचिकाकर्ताओं ने 34540 शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया का उदाहरण दिया, जिसमें NSP से प्रमाणित कई उम्मीदवारों की नियुक्ति राज्य सरकार की निगरानी में की गई थी।

  3. NSP द्वारा प्रमाणपत्र सत्यापन किया गया था और उनकी सूची राज्य सरकार को भेजी गई थी। (जैसे 323 प्रमाणपत्रों की सूची 2009 में NSP द्वारा भेजी गई थी)

  4. जिन उम्मीदवारों की नियुक्ति पूर्व में इसी संस्था के प्रमाणपत्र पर की गई थी, उन्हें सेवा से नहीं हटाया गया, ऐसे में याचिकाकर्ताओं के साथ भेदभावपूर्ण रवैया अपनाया गया है।

  5. पूर्व में इसी तरह के मामलों में हाईकोर्ट द्वारा सेवा बहाल करने का आदेश दिया गया है (जैसे CWJC No. 6753/2013 और CWJC No. 17365/2014)।

सरकार का पक्ष

राज्य सरकार की ओर से प्रस्तुत वकील ने निम्न तर्क दिए:

  1. NSP संस्था को बिहार राज्य सरकार, NCTE अथवा UGC से कोई मान्यता प्राप्त नहीं है

  2. याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति उस संस्था के प्रमाणपत्र पर हुई है, जो प्रशिक्षण हेतु आवश्यक वैध संस्था नहीं है।

  3. LPA No. 921/2012 में कोर्ट स्पष्ट कर चुका है कि NSP मान्य संस्थान नहीं है।

  4. चूंकि याचिकाकर्ता आवश्यक अर्हता पूरी नहीं करते थे, उनकी नियुक्ति ग़लत और अवैध थी, और सेवा समाप्ति कानूनी और औचित्यपूर्ण है।

अदालत का निष्कर्ष

न्यायमूर्ति अंजनी कुमार शरण की एकल पीठ ने निम्नलिखित आधारों पर याचिका खारिज कर दी:

  • याचिकाकर्ता यह सिद्ध करने में विफल रहे कि Nav Bharat Shiksha Parishad, ओडिशा को बिहार सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त थी

  • LPA No. 921/2012 में भी यही निष्कर्ष निकाला गया था।

  • पूर्व में जिन मामलों में बहाली का आदेश दिया गया, वे तथ्य और प्रमाण के आधार पर अलग थे, इसलिए उन्हें इस मामले से जोड़ना उचित नहीं।

  • सेवा समाप्ति में कानून का उल्लंघन नहीं हुआ, चूंकि नियुक्ति ही अवैध थी।

  • याचिकाकर्ताओं द्वारा बार-बार यह तर्क देना कि "दूसरों को नियुक्ति मिल गई थी", कानूनी मान्यता की कमी की भरपाई नहीं कर सकता।

न्यायालय का आदेश

याचिका संख्या CWJC No. 3281 of 2020 को 17 सितंबर 2024 को यह कहकर खारिज कर दिया गया कि याचिकाकर्ता यह साबित नहीं कर पाए कि उनका प्रमाणपत्र मान्य संस्था से था। इस आधार पर, सेवा समाप्ति को पूरी तरह वैध ठहराया गया।

महत्वपूर्ण निष्कर्ष

  • फर्जी या अमान्य संस्था से प्राप्त प्रमाणपत्र के आधार पर की गई नियुक्ति को न्यायिक मान्यता नहीं मिल सकती, भले ही सेवा के कुछ वर्ष हो चुके हों।

  • यदि नियुक्ति प्रारंभ से ही अवैध हो, तो प्राकृतिक न्याय या सुनवाई का अवसर भी उसका उपचार नहीं कर सकता।

  • पूर्व उदाहरण या अन्य व्यक्तियों को लाभ मिलने से एक याचिकाकर्ता के मामले में राहत की गारंटी नहीं बनती।

  • सरकारी नियुक्तियों में पारदर्शिता और वैध योग्यता प्रमाणपत्र आवश्यक हैं।

सारांश

यह फैसला बिहार में शिक्षक नियुक्तियों से जुड़े मामलों में एक महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश प्रदान करता है। यह उन सभी उम्मीदवारों के लिए चेतावनी है जो ग़लत ढंग से या अवैध संस्थानों से प्रमाणपत्र प्राप्त कर नौकरी हासिल करने की कोशिश करते हैं। यह निर्णय सरकारी सेवा में सत्यापन, वैधता और योग्यता की अनिवार्यता को सशक्त रूप से रेखांकित करता है।

पूरा फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMzI4MSMyMDIwIzEjTg==-McTYHXnmAxQ=

 


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