भूमिका:
यह मामला बिहार के बेगूसराय जिले के हवासपुर गांव की उस विवादित ज़मीन का है, जहाँ अधूरे भुगतान पर की गई बिक्री, धोखे से की गई सुलह और कानूनी तकनीकीताओं ने करीब 30 वर्षों तक दो पक्षों को अदालतों के चक्कर काटने पर मजबूर किया। मामला सेकंड अपील संख्या 18/1992 से संबंधित है, जिसे पटना हाईकोर्ट ने 03 सितंबर 2024 को निस्तारित किया। इस मामले में न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि जब तक ज़मीन की पूरी कीमत नहीं चुकाई जाती, तब तक मालिकाना हक़ (title) नहीं मिलता, चाहे रजिस्ट्री हो गई हो।
मामले की पृष्ठभूमि:
विवाद की शुरुआत वर्ष 1958 से होती है, जब तुलसी सिंह और अन्य ने दो अलग-अलग बिक्री पत्रों के माध्यम से अपनी जमीन — प्रत्येक एक बीघा, आठ कठ्ठा और अठारह धूर — बेचने का अनुबंध किया। पहला बैनामा सफलतापूर्वक पूरा हुआ और उसकी पूरी कीमत ₹2000/- चुका दी गई। लेकिन दूसरे बैनामे (Ext.C/1) की पूरी कीमत (₹2000) नहीं दी गई — केवल ₹1500 ही दिए गए।
तुलसी सिंह ने दो बार नोटिस भेजकर शेष ₹500 की मांग की, लेकिन भुगतान न होने के कारण 07 अप्रैल 1959 को उस बैनामे को रद्द करने की प्रक्रिया अपनाई।
इसी बीच सरजू सिंह, जो उस जमीन में एक-तिहाई हिस्सेदार थे, ने 22 अगस्त 1964 को वही हिस्सा बुधन महतो के नाम रजिस्ट्री कर दिया। इस क्रय-विक्रय के बाद वास्तविक विवाद शुरू हुआ, क्योंकि पहले वाले पक्ष (रामेश्वर महतो और उनके उत्तराधिकारी) ने खुद को जमीन का असली मालिक बताया।
प्रक्रियाएं और मुकदमे:
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1964 में रामेश्वर महतो ने एक वाद (T.S. No. 68/1964) दायर किया, जिसमें उन्होंने अपने मालिकाना हक़ की पुष्टि चाही।
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इस केस में बुधन महतो को भी पक्षकार बनाया गया, लेकिन उन्होंने दावा किया कि उन्हें कभी नोटिस नहीं मिला और उनके बिना मिलीभगत से समझौता हो गया।
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बाद में बुधन महतो ने Order 9 Rule 13 CPC के तहत वह डिक्री हटाने की कोशिश की लेकिन उनकी अर्जी खारिज हो गई।
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इसके बाद उन्होंने नई वाद (T.S. No. 66/1972) दायर कर अपना अधिकार और कब्जा घोषित करने की मांग की।
प्रमुख कानूनी प्रश्न:
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क्या बिना पूरी कीमत चुकाए बैनामा से मालिकाना हक़ स्थानांतरित हो सकता है?
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क्या एक बार Order 9 Rule 13 CPC के तहत याचिका खारिज होने पर, नया मुकदमा दायर किया जा सकता है?
पटना हाईकोर्ट का विश्लेषण और फैसला:
✅ पहला प्रश्न - भुगतान और मालिकाना हक़:
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कोर्ट ने कहा कि जब खुद बैनामा में लिखा गया हो कि “पूरे भुगतान के बाद ही मालिकाना हक़ मिलेगा,” तब अधूरा भुगतान होने पर रजिस्ट्री के बावजूद हक़ नहीं बनता।
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यहाँ, दूसरे बैनामे (Ext.C/1) में साफ लिखा था कि बचे हुए ₹500 की अदायगी के बाद ही हक़ स्थानांतरित होगा।
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इसलिए, जब तक पूरा भुगतान नहीं हुआ, जमीन का मालिकाना हक़ रामेश्वर महतो को नहीं मिला और इसी बीच सरजू सिंह ने अपनी हिस्सेदारी वैध रूप से बुधन महतो को बेच दी — जिससे उसका हक़ वैध माना गया।
✅ दूसरा प्रश्न - दूसरी बार मुकदमा दायर करने की वैधता:
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कोर्ट ने स्पष्ट किया कि Order IX Rule 13 के तहत अर्जी खारिज होने से केवल उस डिक्री को हटाने की कोशिश नाकाम होती है, लेकिन नया मुकदमा दायर करने पर कोई रोक नहीं है।
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इस मामले में बुधन महतो को कभी समन नहीं मिला, और समझौता भी उनके बिना हुआ, अतः वह एक नया मुकदमा दायर कर सकते हैं।
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कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि कोई भी पक्षकार फ्रॉड या मिलीभगत से बनी डिक्री को चुनौती देने के लिए अलग से मुकदमा दायर कर सकता है।
महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ:
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Transfer of Property Act की धारा 8 के तहत, जब तक अन्यथा कोई शर्त न हो, रजिस्ट्री के साथ ही मालिकाना हक़ स्थानांतरित हो जाता है। लेकिन जब बैनामे में साफ शर्त हो कि “पूरे भुगतान के बाद ही हक़ मिलेगा,” तब उस शर्त को पूरा करना आवश्यक होता है।
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यहां “बिना भुगतान के अधिकार नहीं” की स्पष्ट शर्त थी, जिसे कोर्ट ने पूरी तरह मान्यता दी।
अंतिम निर्णय:
पटना हाईकोर्ट ने प्रथम अपीलीय न्यायालय के निर्णय को सही ठहराते हुए सेकंड अपील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि:
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बिना पूरा भुगतान किए बैनामा से मालिकाना हक़ नहीं स्थानांतरित होता।
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Order IX Rule 13 CPC के तहत अर्जी खारिज होने के बाद भी फ्रॉड और मिलीभगत से बनी डिक्री को चुनौती दी जा सकती है।
निष्कर्ष:
यह निर्णय स्पष्ट रूप से बताता है कि:
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केवल रजिस्ट्री से जमीन का मालिकाना हक़ नहीं मिलता, अगर भुगतान अधूरा हो।
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ज़मीन खरीदते समय सभी कानूनी औपचारिकताओं को पूरी तरह से निभाना ज़रूरी है।
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और सबसे अहम, न्यायपालिका ने यह स्पष्ट कर दिया कि व्यक्ति को फर्जी डिक्री से लड़ने का अधिकार हमेशा सुरक्षित है।
पूरा
फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/OSMxOCMxOTkyIzEjTg==-7JanVPazOKs=
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