सिविल वाद में विलंब से की गई संशोधन याचिका खारिज — पटना उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय

 



निर्णय की सरल व्याख्या:

पटना उच्च न्यायालय ने अपने एक हालिया निर्णय में यह स्पष्ट किया कि यदि मुकदमे के दौरान, विशेषकर जब ट्रायल अंतिम चरण में हो, तब संशोधन के लिए याचिका दायर की जाती है और उसमें यह स्पष्ट नहीं किया जाता कि उक्त संशोधन समय पर क्यों नहीं किया गया, तो ऐसी याचिका खारिज की जा सकती है। यह मामला एक पारिवारिक भूमि विवाद से संबंधित था, जिसमें वादीगणों ने 2003 में एक बंटवारा वाद (Title Suit No. 30/2003) दायर किया था।

वाद में दलील दी गई कि विवादित संपत्ति पैतृक थी और परिवार की संयुक्त संपत्ति थी, जिसे भूमि विनिमय (exchange deed) के माध्यम से प्राप्त किया गया था। परंतु प्रतिवादी संख्या 3 ने यह दावा किया कि वह संपत्ति उसकी स्वअर्जित थी। जब ट्रायल समाप्ति की ओर था और प्रतिवादियों की अंतिम बहस हो चुकी थी, तब वादियों ने सी.पी.सी. के आदेश 6, नियम 17 के अंतर्गत वाद पत्र में संशोधन के लिए आवेदन दायर किया।

नीचली अदालत ने यह याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि वाद वर्षों पुराना है, बहस अंतिम चरण में है, और संशोधन का कोई उचित कारण नहीं बताया गया है कि यह समय पर क्यों नहीं किया गया। इसके अतिरिक्त, यह भी कहा गया कि इस संशोधन से मुकदमे की प्रकृति बदल सकती है और यह एक प्रकार से प्रतिवादियों की दलीलों को निष्प्रभावी करने का प्रयास प्रतीत होता है।

उच्च न्यायालय ने नीचली अदालत के आदेश को सही ठहराया और स्पष्ट किया कि विलंब से किया गया संशोधन तभी स्वीकार्य होता है जब यह साबित किया जाए कि उचित परिश्रम के बावजूद समय पर संशोधन नहीं किया जा सका।

इस निर्णय का महत्व क्या है?

यह निर्णय विशेष रूप से उन मुकदमों में मार्गदर्शक है जहाँ वाद के अंतिम चरण में संशोधन की मांग की जाती है। इससे यह स्पष्ट संदेश जाता है कि केवल सुविधा या रणनीति के तहत देर से किए गए संशोधन को स्वीकार नहीं किया जाएगा। यह न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता और समयबद्धता को सुनिश्चित करता है।

तय किए गए कानूनी मुद्दे:

  1. क्या आदेश 6, नियम 17 सी.पी.सी. के तहत ट्रायल की समाप्ति के बाद संशोधन की अनुमति दी जा सकती है?

  2. क्या वादीगणों ने संशोधन में विलंब के लिए पर्याप्त कारण दर्शाया?

  3. क्या प्रस्तावित संशोधन मुकदमे की प्रकृति को परिवर्तित करता है?

पक्षकारों द्वारा संदर्भित निर्णय:

  • आदेश 6, नियम 17 सी.पी.सी. — "...कोई भी पक्ष ऐसा संशोधन कर सकता है जो विवाद के वास्तविक मुद्दों के समाधान के लिए आवश्यक हो।"

  • संशोधन के समय से संबंधित अपवाद: "...जब तक यह स्पष्ट न हो कि यथासमय सावधानी बरतने के बावजूद संशोधन समय पर नहीं किया जा सका।"

न्यायालय द्वारा अपनाए गए निर्णय:

"...वाद के उस चरण में जब सभी प्रतिवादियों की अंतिम बहस पूरी हो चुकी थी, और वादियों ने यह नहीं बताया कि संशोधन समय पर क्यों नहीं किया गया, कोर्ट ने संशोधन याचिका को स्वीकार नहीं किया।"

केस शीर्षक: सतीश कुमार सिंह एवं अन्य बनाम देवी कुमार सिंह एवं अन्य

केस नंबर: C.Misc. No. 562 of 2019

निर्णय का संदर्भ: 2024(1)PLJR

पीठ और न्यायाधीशों के नाम: माननीय न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार सिंह

वकीलों के नाम जिन्होंने पक्ष प्रस्तुत किया और किसके लिए प्रस्तुत किया:

  • वादीगणों के लिए: श्री भानु प्रताप सिंह, अधिवक्ता

  • प्रतिवादी पक्ष की जानकारी अनुपलब्ध

निर्णय की आधिकारिक लिंक:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NDQjNTYyIzIwMTkjMSNO-k2RvPiZJaSg=

 




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