जब नियुक्ति पर अधिकार नहीं बनता: पटना हाई कोर्ट ने आंगनबाड़ी सेविका बहाली विवाद में स्पष्ट किया ‘थर्ड पार्टी’ का स्थान

 


न्यायालय का फैसला: सरल भाषा में व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने Minu Kumari बनाम बिहार राज्य मामले में यह स्पष्ट किया कि यदि कोई व्यक्ति किसी पद पर केवल इसलिए नियुक्त हुआ है क्योंकि पूर्ववर्ती पदधारी को हटाया गया था, तो उस व्यक्ति को उस पद की स्वतंत्र कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं होती, यदि पूर्व पदधारी की पुनः बहाली वैध रूप से होती है।

मामले में, याचिकाकर्ता को वर्ष 2016 में एक आंगनबाड़ी केन्द्र पर सेविका नियुक्त किया गया था। इससे पहले, वर्ष 2011 में वहाँ कार्यरत सेविका (प्रतिकर्ता संख्या 8) को अनुपस्थिति के आधार पर हटा दिया गया था। उक्त सेविका ने अपने हटाए जाने को चुनौती देते हुए जिला पदाधिकारी के समक्ष अपील दायर की थी। अपील सात वर्षों के बाद सफल हुई और उसे पुनः बहाल कर दिया गया।

याचिकाकर्ता ने यह तर्क दिया कि:

  • अपील को सात वर्षों बाद क्यों स्वीकार किया गया जब नियमावली के अनुसार 30 दिनों में निर्णय लिया जाना चाहिए?

  • पुनः बहाली के समय वर्तमान सेविका (याचिकाकर्ता) को अपील में पक्षकार क्यों नहीं बनाया गया?

हालाँकि, न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के Poonam बनाम उत्तर प्रदेश राज्य [(2016) 2 SCC 779] मामले का हवाला देते हुए कहा कि:

  • जिस पद पर याचिकाकर्ता को नियुक्ति मिली, वह केवल इसीलिए रिक्त हुआ था क्योंकि पूर्व सेविका को हटाया गया था।

  • पूर्व सेविका की अपील लंबित होने के बावजूद यदि किसी नए व्यक्ति की नियुक्ति होती है, तो वह “थर्ड पार्टी” होती है और उसे पुनः बहाली में सुनवाई का कोई स्वाभाविक अधिकार नहीं होता।

इस निर्णय का महत्व क्या है?

यह निर्णय खासकर ग्रामीण स्तर पर सरकारी पदों की नियुक्तियों में स्पष्टता लाता है:

  • यदि किसी पद को लेकर कोई अपील लंबित है, तो अस्थायी रूप से की गई नियुक्तियों को स्थायी अधिकार नहीं माना जा सकता।

  • नियुक्ति की वैधता पूर्व सेवा विवाद के निर्णय पर निर्भर करती है।

  • यह सरकारी प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखने में मदद करता है और अवैध नियुक्तियों पर रोक लगाता है।

तय किए गए कानूनी मुद्दे

  • क्या याचिकाकर्ता की नियुक्ति वैध थी जबकि पूर्व पदधारी की अपील लंबित थी?

  • क्या अपील की देरी न्यायोचित थी?

  • क्या याचिकाकर्ता को अपील में पक्षकार बनाए बिना लिया गया निर्णय विधिसम्मत है?

पक्षकारों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Poonam बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य [(2016) 2 SCC 779], विशेष रूप से अनुच्छेद 48, 49, 53

न्यायालय द्वारा अपनाया गया निर्णय

  • "याचिकाकर्ता ‘थर्ड पार्टी’ है और उसका कोई स्वतंत्र कानूनी अधिकार नहीं बनता।"

  • "जिला पदाधिकारी द्वारा अपील स्वीकार करना, भले ही देर से हो, विधिसम्मत है।"

केस शीर्षक

Minu Kumari @ Minu Kumari Devi बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर

LPA No. 668 of 2022 (CWJC No.15130 of 2018 से संबंधित)

निर्णय का संदर्भ

2024(4)PLJR

पीठ और न्यायाधीशों के नाम

माननीय मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन एवं माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी

वकीलों के नाम

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री अरुण कुमार तिवारी

  • राज्य की ओर से: श्री ज्ञान प्रकाश ओझा (GA-7)

निर्णय की आधिकारिक लिंक

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MyM2NjgjMjAyMiMxI04=-gJ94NcPKyJA=


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