पति की गैरहाजिरी और मानसिक क्रूरता के आधार पर पटना उच्च न्यायालय ने विवाह विच्छेद को मंजूरी दी



निर्णय की सरल व्याख्या:

पटना उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में, एक महिला द्वारा दायर तलाक याचिका को स्वीकार करते हुए, परिवार न्यायालय द्वारा पारित तलाक खंडन के निर्णय को निरस्त कर दिया। मामला उस स्थिति से संबंधित था जहाँ याचिकाकर्ता विवाह के बाद ससुराल में दहेज की मांग और मानसिक यातनाओं के चलते मात्र कुछ दिनों में ही वापस मायके आ गई थीं। इसके पश्चात, पति ने न तो अदालत में उपस्थित होकर अपने पक्ष को प्रस्तुत किया और न ही याचिकाकर्ता को पुनः साथ रखने का कोई प्रयास किया।

याचिकाकर्ता ने वर्ष 2018 में हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(i-a) के तहत तलाक की याचिका दायर की थी, जिसे 2023 में परिवार न्यायालय ने इस आधार पर अस्वीकार कर दिया कि मानसिक क्रूरता का कोई ठोस प्रमाण नहीं था और विवाह के न consummate होने का कोई स्पष्ट बयान भी रिकॉर्ड में नहीं था।

हालाँकि, उच्च न्यायालय ने माना कि पति द्वारा याचिका का विरोध न करना, अदालत में उपस्थित न होना और इतने वर्षों तक अलगाव बनाए रखना अपने आप में मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है। न्यायालय ने कहा कि जब पति पत्नी को लेने के लिए कोई प्रयास नहीं करता और लगातार अनुपस्थित रहता है, तो विवाह का उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है।

यह निर्णय क्यों महत्वपूर्ण है?

यह निर्णय उन विवाहित महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जो मानसिक क्रूरता, उपेक्षा या पति की गैरहाजिरी के कारण वर्षों तक न्याय की प्रतीक्षा करती हैं। यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि तलाक जैसे मामलों में अदालतें अत्यधिक तकनीकी दृष्टिकोण की बजाय सामाजिक न्याय की भावना से निर्णय लेंगी।

यह सरकार और समाज दोनों के लिए एक चेतावनी है कि दहेज, उपेक्षा और विवाहेतर दुर्व्यवहार जैसे मुद्दों को गंभीरता से लिया जाए और पीड़ित पक्ष को शीघ्र न्याय मिले।

तय किए गए कानूनी मुद्दे:

  1. क्या पति की निरंतर अनुपस्थिति और नकारात्मक व्यवहार मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है?

  2. क्या परिवार न्यायालय द्वारा सबूतों के तकनीकी मूल्यांकन के आधार पर याचिका को खारिज करना उचित था?

  3. क्या सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के तहत 'preponderance of probability' का मानदंड लागू होना चाहिए?

पक्षकारों द्वारा संदर्भित निर्णय:

  • Dr. N.G. Dastane v. Mrs. S. Dastane, AIR 1975 SC 1534 – मानसिक क्रूरता की परिभाषा

  • V. Bhagat v. D. Bhagat, AIR 1994 SC 710 – मानसिक व शारीरिक क्रूरता के भेद

  • Roopa Soni v. Kamalnarayan Soni, 2023 SCC OnLine SC 1127 – सामाजिक न्याय की व्याख्या

  • Samar Ghosh v. Jaya Ghosh, (2007) 4 SCC 511 – विवाह में क्रूरता का व्यवहारिक परीक्षण

न्यायालय द्वारा अपनाया गया निर्णय:

  • “पति की अनुपस्थिति, कोई प्रतिक्रिया न देना और पत्नी को वर्षों तक छोड़ देना मानसिक क्रूरता का प्रमाण है।”

  • “परिवार न्यायालय का दृष्टिकोण अत्यधिक तकनीकी था, जबकि तलाक जैसे मामले में लचीलेपन और संवेदनशीलता की आवश्यकता होती है।”

केस शीर्षक:

श्वेता सिंह बनाम प्रणव कुमार सिंह

केस नंबर:

मिसलेनियस अपील सं. 461/2023

निर्णय का संदर्भ:

2024(4)PLJR

पीठ और न्यायाधीशों के नाम:

माननीय श्री न्यायमूर्ति पी. बी. बजंथरी एवं माननीय श्री न्यायमूर्ति आलोक कुमार पांडेय

वकीलों के नाम:

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री साहिल कुमार

  • प्रतिकर्ता की ओर से: कोई उपस्थिति नहीं

निर्णय की आधिकारिक लिंक:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MiM0NjEjMjAyMyMxI04=-GUjwqqFmv0g=

 


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