विवाह से पहले किया गया नामांकन निरस्त नहीं होगा जब तक नया नामांकन नहीं किया गया हो: पटना हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय

 


निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने Civil Writ Jurisdiction Case No. 2846 of 2022 में यह स्पष्ट किया कि यदि कोई कर्मचारी विवाह से पहले अपने माता-पिता या भाई-बहन को NPS (राष्ट्रीय पेंशन योजना) का नामांकित करता है, और विवाह के बाद नया नामांकन नहीं करता, तो पुराना नामांकन स्वतः निरस्त नहीं माना जाएगा। यह निर्णय Brajesh Mishra नामक मृत कर्मचारी के NPS लाभों को लेकर उत्पन्न विवाद से जुड़ा है।

मृतक कर्मचारी ने अपनी माँ और भाई को नामांकित किया था, परंतु विवाह के बाद कोई नया नामांकन नहीं किया। मृत्यु के बाद, पत्नी और माँ के बीच NPS लाभों को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ। बैंक ने पुराने नामांकन को विवाह के बाद स्वतः निरस्त मानते हुए उत्तराधिकार प्रमाण पत्र की मांग की थी।

अदालत ने स्पष्ट किया कि PFRDA Regulations, 2015 की धारा 31(5) में यह नहीं कहा गया है कि विवाह के बाद पुराने नामांकन स्वतः रद्द हो जाते हैं, बल्कि नए नामांकन किए जाने पर ही पुराने नामांकन अमान्य माने जाएंगे।

अतः कोर्ट ने आदेश दिया कि मृतक कर्मचारी की माँ (याचिकाकर्ता) और पत्नी (प्रतिकर्ता संख्या 4) दोनों को NPS राशि का 50-50 प्रतिशत हिस्सा समान रूप से दिया जाए। साथ ही, यदि दोनों सहमत हों तो यह राशि आवास ऋण की अदायगी में भी समायोजित की जा सकती है, अन्यथा बैंक कानूनी प्रक्रिया के तहत कार्रवाई कर सकता है।

इस निर्णय का महत्व

यह निर्णय उन परिवारों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिनमें कर्मचारी की असामयिक मृत्यु के बाद NPS लाभों को लेकर विवाद उत्पन्न होता है। यह स्पष्ट करता है कि नामांकन केवल भुगतान की प्रक्रिया को निर्देशित करता है, उत्तराधिकार को नहीं।

इसके अतिरिक्त, यह निर्णय विधिक उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अंतर्गत वैध उत्तराधिकारियों को उनका अधिकार दिलाने में सहायक होगा। यह बैंकों को भी स्पष्ट मार्गदर्शन प्रदान करता है कि किस स्थिति में नामांकित व्यक्ति को भुगतान करना है और कब उत्तराधिकार प्रमाणपत्र की आवश्यकता है।

तय किए गए कानूनी मुद्दे

  • क्या विवाह से पहले किया गया नामांकन विवाह के बाद स्वतः अमान्य हो जाता है?

  • क्या मृत कर्मचारी की माँ और पत्नी दोनों NPS लाभों की समान रूप से हकदार हैं?

  • क्या बैंक द्वारा उत्तराधिकार प्रमाणपत्र की मांग उचित थी?

पक्षकारों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Shipra Sengupta v. Mridul Sengupta, (2009) 10 SCC 680: नामांकित व्यक्ति केवल रिसीवर होता है, मालिक नहीं।

  • Shakti Yezdani v. Jayanand Jayant Salgonkar, Civil Appeal No. 7107 of 2017: नामांकित व्यक्ति उत्तराधिकारियों के अधिकार को नहीं काट सकता।

  • Ati Razia Devi v. State of Bihar, 2016(1) PLJR 835: राज्य केवल नामांकित व्यक्ति को भुगतान कर वैध रूप से मुक्त हो सकता है।

  • Khushboo Gupta v. LIC, 2019(4) PLJR 885: नामांकन के बावजूद पत्नी और माँ दोनों उत्तराधिकार में समान रूप से हकदार हैं।

न्यायालय द्वारा अपनाए गए निर्णय

“नामांकन मात्र लाभ का अधिकार नहीं देता। नामांकित व्यक्ति राशि प्राप्त कर सकता है, परंतु वह उसे विधिक उत्तराधिकारियों में बाँटना होगा।”
माननीय न्यायमूर्ति हरीश कुमार

केस शीर्षक

Smt. Raj Lakshmi Mishra & Anr. Vs. The Chairman Cum Managing Director, Canara Bank & Ors.

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 2846 of 2022

निर्णय का संदर्भ

2024(4)PLJR

पीठ और न्यायाधीशों के नाम

माननीय न्यायमूर्ति हरीश कुमार

वकीलों के नाम

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री ज्ञानेंद्र कुमार शुक्ला

  • प्रतिकर्ता बैंक की ओर से: श्री जितेंद्र कुमार

  • प्रतिकर्ता संख्या 4 की ओर से: श्री शेखर सिंह

निर्णय की आधिकारिक लिंक


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