निर्णय का सरलीकृत विवरण:
इस मामले में पत्नी (याचिकाकर्ता) ने कैमूर के पारिवारिक न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें उसकी अंतरिम भरण-पोषण राशि को ₹11,000 से बढ़ाकर ₹45,000 करने की याचिका खारिज कर दी गई थी। यह मामला पति द्वारा हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1A) के तहत तलाक के लिए दायर किया गया था।
याचिकाकर्ता का कहना था कि उसका पति, जो एक वरिष्ठ प्रबंधक है और ₹1,50,000 मासिक कमाता है, अधिक भरण-पोषण देने में सक्षम है। लेकिन न्यायालय ने बिना मेरिट पर विचार किए, केवल यह कहकर याचिका खारिज कर दी कि मामला अंतिम बहस की स्थिति में है।
वहीं, पति ने तर्क दिया कि जब मामला अंतिम निर्णय की स्थिति में हो और दोनों पक्षों की साक्ष्य प्रक्रिया पूरी हो चुकी हो, तब नया अंतरिम आवेदन स्वीकार करना अनावश्यक होता है।
माननीय उच्च न्यायालय ने पारिवारिक न्यायालय की इस दृष्टिकोण को सही माना और कहा कि ऐसे समय में प्राथमिकता मामले के अंतिम निपटारे की होनी चाहिए। साथ ही यह भी कहा गया कि पत्नी ने कोई अलग भरण-पोषण की याचिका धारा 125 सीआरपीसी के तहत नहीं दायर की, जिससे उसकी मांग और कमजोर हो गई।
निर्णय का महत्व:
यह फैसला महत्वपूर्ण है क्योंकि यह बताता है कि जब matrimonial case अंतिम चरण में हो, तब अंतरिम राहत के आवेदन न्यायिक प्रक्रिया में देरी का कारण नहीं बनने चाहिए। यह तय करता है कि भरण-पोषण के लिए अलग कानूनी उपाय अपनाए जाएं ताकि न्यायिक कार्यवाही सुचारू रूप से चले।
विधिक मुद्दे एवं न्यायालय का निर्णय:
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क्या अंतिम बहस के समय अंतरिम भरण-पोषण बढ़ाने से इनकार करना गलत था? नहीं
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क्या याचिका में देरी के कारण आदेश अवैध हो गया? नहीं
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अंतिम निर्णय: याचिका खारिज, पारिवारिक न्यायालय को 3 महीने में मामला निपटाने का निर्देश
मामले का शीर्षक: पिंकी कुमारी बनाम राजीव कुमार
मामला संख्या: सिविल मिस. ज. संख्या 170/2023
उद्धरण: 2024(4) PLJR (624)
न्यायाधीशों की पीठ: माननीय श्री न्यायमूर्ति अरुण कुमार झा
वकीलों के नाम:
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याचिकाकर्ता की ओर से: श्री बाबन कुमार, अधिवक्ता
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प्रतिवादी की ओर से: श्रीमती वागीशा प्रज्ञा वाचकनवी, सुश्री अंकिता रॉय, श्री अशुतोष कुमार पांडेय, अधिवक्ता
निर्णय लिंक: NDQjMTcwIzIwMjMjMSNO-fdaRg0ujVpU=
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