संपत्ति विवाद में सिविल कोर्ट के आदेश के खिलाफ रिट याचिका: पटना हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्देश

 


फैसले की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय में दायर एक रिट याचिका में याचिकाकर्ता ने मुनसिफ, छपरा द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें पुराने मकान की मरम्मत की अनुमति को अस्वीकार कर दिया गया था। यह आदेश सिविल मुकदमे (टाइटल सूट संख्या 178/1998) के दौरान दिया गया था।

याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट से अनुरोध किया था कि उसे अपने पुराने दुकान की मरम्मत करने की अनुमति दी जाए, जो गिरने के कगार पर थी। लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सिविल न्यायालय के ऐसे अंतरिम आदेशों के खिलाफ अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका दायर नहीं की जा सकती।

न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय “राधेश्याम बनाम छबी नाथ” [(2015) 5 SCC 423] का हवाला दिया, जिसमें यह कहा गया है कि सिविल अदालतों के न्यायिक आदेश अनुच्छेद 226 के अंतर्गत रिट क्षेत्राधिकार के अधीन नहीं आते। केवल अनुच्छेद 227 के तहत हाईकोर्ट निगरानी अधिकार का उपयोग कर सकता है।

इस पृष्ठभूमि में, कोर्ट ने याचिकाकर्ता को निर्देश दिया कि वह अपनी रिट याचिका को “सिविल मिसलेनियस याचिका” में बदल दें, ताकि उस पर उपयुक्त मंच पर विचार हो सके। कोर्ट ने रजिस्ट्री को याचिकाकर्ता की सहायता करने का भी निर्देश दिया।


इस निर्णय का महत्व

यह निर्णय स्पष्ट करता है कि:

  • नागरिक विवादों में न्यायिक आदेशों के खिलाफ सीधे रिट याचिकाएं अनुच्छेद 226 के तहत दायर नहीं की जा सकतीं।

  • अनुच्छेद 227 के अंतर्गत ही सिविल अदालतों के कार्यों की निगरानी की जा सकती है।

  • यह प्रक्रिया कानून व्यवस्था को बनाए रखने और अदालतों के बीच अधिकारों की स्पष्टता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।

यह सामान्य नागरिकों, वकीलों और न्यायपालिका के लिए दिशानिर्देशक है कि किस मंच पर कौन-सी याचिका उपयुक्त है।


तय किए गए कानूनी मुद्दे

  1. क्या सिविल कोर्ट के अंतरिम आदेश के विरुद्ध अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका दायर की जा सकती है?

  2. क्या अनुच्छेद 227 और 226 के बीच अधिकार क्षेत्र में भेद है?

  3. क्या संपत्ति विवादों में निजी व्यक्तियों के विरुद्ध रिट याचिकाएं अनुमेय हैं?


पक्षकारों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Durga Devi बनाम Vijay Kumar Poddar & Ors., C.R. No. 1067/2009 (पटना हाईकोर्ट)

  • Radhey Shyam & Another बनाम Chhabi Nath & Others, (2015) 5 SCC 423


न्यायालय द्वारा अपनाए गए निर्णय

  • “सिविल अदालतों के न्यायिक आदेश अनुच्छेद 226 के अंतर्गत रिट क्षेत्राधिकार के अधीन नहीं आते।” – Radhey Shyam निर्णय के आधार पर

  • “अनुच्छेद 227 का अधिकार अनुच्छेद 226 से भिन्न है, और उसे विस्तारित नहीं किया जा सकता।” – Shalini Shyam Shetty निर्णय के आधार पर


केस शीर्षक

Manoj Prasad बनाम Ram Deyal Sah @ Ram Deyal Prasad

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 10381 of 2014

निर्णय का संदर्भ- 2024(4) PLJR 

पीठ और न्यायाधीशों के नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह

वकीलों के नाम

  • श्री बसंत कुमार सिंह (दोनों पक्षों के लिए)

निर्णय की आधिकारिक लिंक

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