पत्नी को जबरन साथ रहने को विवश नहीं किया जा सकता – विवाहिक अधिकार पुनर्स्थापन याचिका खारिज

 


भूमिका

विवाह के बाद यदि पति-पत्नी के बीच मतभेद उत्पन्न हो जाएं और वे अलग रहने लगें, तो क्या पति यह दावा कर सकता है कि पत्नी को न्यायालय आदेश दे कि वह उसके साथ वैवाहिक जीवन पुनः शुरू करे? इसी संवेदनशील प्रश्न पर आधारित था यह मामला, जिसमें पति मुकेश कुमार साह द्वारा वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापन (Restitution of Conjugal Rights) के लिए दायर याचिका को पहले फैमिली कोर्ट, वैशाली ने खारिज किया और फिर उसकी अपील को भी पटना हाई कोर्ट ने ठुकरा दिया।

पृष्ठभूमि

पति का पक्ष (अपीलकर्ता):

  • मुकेश कुमार साह की शादी नीतू देवी से 23 मई 2002 को हुई।

  • पत्नी कुछ दिन ससुराल में रहकर अपने मायके चली गई और वापस नहीं आई।

  • आरोप लगाया कि पत्नी वैवाहिक जीवन नहीं जीना चाहती थीं, धन की माँग करती थीं, और झूठे केस में फँसाने की धमकी देती थीं।

  • जनवरी 2011 से अगस्त 2012 के बीच कई बार पत्नी को बुलाने का प्रयास किया लेकिन वह नहीं आई।

  • दावा किया कि वह पत्नी के साथ "सम्मान और गरिमा" के साथ रहने को तैयार हैं, और इसलिए विवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना की याचिका दायर की गई।

पत्नी का पक्ष (प्रतिवादी):

  • शादी के समय ₹80,000 नकद और गहने दिये गए थे।

  • पति का अपनी भाभी से अवैध संबंध था, और उसी के कहने पर पत्नी की उपेक्षा होती रही।

  • 2003 में गर्भवती हुई, लेकिन सही इलाज न मिलने से गर्भपात हुआ।

  • पति यूपी के ओबरा में बस गए और पत्नी को साथ नहीं ले गए, बल्कि अकेली बूढ़ी सास की सेवा के लिए छोड़ दिया।

  • प्रताड़ना के बाद मायके आकर रहने लगीं और भरण-पोषण के लिए केस दायर किया जिसमें ₹3,000 प्रतिमाह की अंतरिम सहायता मंजूर हुई।

  • पति ने एकमुश्त समझौते की पेशकश की थी, लेकिन फिर बिना जानकारी दिए इस पुनर्स्थापन का केस दायर कर दिया।

  • यह भी आरोप लगाया कि याचिका में विवाह की तारीख और गर्भपात जैसी अहम बातें छुपाई गईं।

फैमिली कोर्ट द्वारा याचिका खारिज करने के कारण

  1. पति का आचरण पत्नी के प्रति असहयोगात्मक और अपमानजनक था।

  2. पत्नी के लिए matrimonial home (ससुराल) असुरक्षित बन चुका था।

  3. भाभी से संबंध, उपेक्षा, इलाज में लापरवाही और मारपीट जैसे गंभीर आरोप लगे थे जिन्हें झूठा नहीं कहा जा सका।

  4. न्यायालय ने माना कि पत्नी के पास वैध कारण थे पति के साथ न रहने के लिए।

  5. जब पत्नी ने स्पष्ट रूप से "एकमुश्त समझौता" की इच्छा जताई, तो उसे जबरन पति के साथ रहने को विवश करना न्यायोचित नहीं।

पटना हाई कोर्ट में अपील

अपील में पति ने दावा किया कि:

  • उसने पत्नी को मनाने की हरसंभव कोशिश की।

  • पत्नी झूठे आरोप लगाकर अलग रह रही है।

  • फैमिली कोर्ट ने उनकी दलीलों को नजरअंदाज किया।

पत्नी की ओर से कहा गया:

  • विवाह का स्पष्ट विवरण याचिका में नहीं था।

  • गर्भपात का जिक्र तक नहीं किया गया।

  • पति ने कभी उसे ओबरा नहीं बुलाया और ससुराल से निकाल दिया।

हाई कोर्ट का विश्लेषण और फैसला

  1. Hindu Marriage Act की धारा 9 के अनुसार, अगर पति-पत्नी में से कोई बिना उचित कारण के अलग रहता है, तो दूसरा पक्ष वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए याचिका दायर कर सकता है। लेकिन यदि अलग रहने का उचित कारण हो, तो बहाली नहीं दी जा सकती।

  2. कोर्ट ने पाया कि:

    • पति ने अपने याचिका में आवश्यक तथ्य छुपाए।

    • पत्नी को कई वर्षों तक प्रताड़ित किया गया, और विवाह में सहयोग नहीं मिला।

    • गर्भपात, भाभी से संबंध, मानसिक प्रताड़ना आदि के आरोपों की उचित जाँच हुई थी।

    • पति की अपील में नए तथ्यों (जैसे अपंगता) को बिना याचिका में उल्लिखित किए जोड़ा गया, जो विधिक रूप से अस्वीकार्य है।

  3. सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा गया कि "जो बातें याचिका में नहीं लिखी गईं, उनका आधार लेकर राहत नहीं दी जा सकती।"

  4. इस आधार पर हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के निर्णय को सही ठहराया और अपील खारिज कर दी।

न्यायिक निष्कर्ष

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विवाह सिर्फ औपचारिकता नहीं बल्कि आपसी सम्मान और सहयोग का संबंध है। जब पत्नी ने मानसिक और सामाजिक रूप से खुद को असुरक्षित महसूस किया, तो उसे पति के साथ जबरन रखने का आदेश देना न्याय के विरुद्ध होगा।

कोर्ट ने यह भी कहा कि कोई भी पक्ष अपने ही गलत आचरण का लाभ नहीं उठा सकता।

प्रमुख कानूनी सिद्धांत जो निर्णय में प्रयुक्त हुए:

  • धारा 9, हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955: वैवाहिक अधिकारों की बहाली।

  • प्लीडिंग और साक्ष्य में तालमेल जरूरी: बिना याचिका में लिखे तथ्यों पर आधारित साक्ष्य स्वीकार नहीं।

  • Supreme Court Decisions:

    • Naresh Kumar v. NTC

    • Bachhaj Nahar v. Nilima Mandal

    • Ram Sarup Gupta v. Bishun Narain College

निष्कर्ष

यह मामला यह दर्शाता है कि विवाह संबंधी विवादों में सिर्फ वैवाहिक बंधन की औपचारिकता नहीं, बल्कि उसके पीछे के व्यवहारिक और मानवीय पक्षों को भी न्यायालय गंभीरता से देखता है। विवाह में अगर पत्नी को सुरक्षा, सम्मान और सहयोग न मिले तो उसे जबरन वैवाहिक जीवन में लौटने को कहना न्यायोचित नहीं है।

पूरा फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MiM0NTQjMjAxOSMxI04=-pfKNUGoxQ3Y=


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